Friday, November 1, 2013

जब देखो तब हाथ तंग.......................


जब देखो तब हाथ तंग जब देखो खींसा तब खाली ॥
तुम ही बोलो हमको कैसी धनतेरस औ’’ दीवाली ?
सट्टा ,जुआ ,लॉटरी हमने सब अजमाकर देख लिया ,
धनिकों में फिर फिर धन पहुँचा कंगलन फिर फिर कंगाली ॥
मालिक लोग चरागां करते फिरें ख़ुशी का हमको क्या ?
मजदूरों की क़िस्मत ख़ालिस ग़म की करना हम्माली ॥
गुड़ तक के लाले हैं कैसे बाँटें खील-बताशे हम ?
आज के दिन भी गुड़-गुड़ करता पेट ये अपनी बदहाली ॥
दीप, तेल, बाती, माचिस, फुलझड़ी, पटाखे लो उधार ,
किन्तु मनाओ दीवाली ये कैसी परंपरा साली ?
संवदिये ने बना दिया ऊँचा पहाड़ इक राई का ,
दीप जलाने वाले ने यों आतिशबाज़ी कर डाली ॥
सदियों सदी पुरानी रीतें मूल लापता है जिनका ,
ये कवि की करतूत है जो कर बैठा मुख को करमाली ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...