Friday, November 15, 2013

मुक्तक : 374 - निकल आई है मेरी


निकल आई है मेरी किसलिए रोनी सी सूरत ?
ग़ज़ब हैं वो जो ग़म में भी रखें हँसने की क़ुव्वत ।।
ग़ुलामी किसको करती है किसी की शाद ख़ुद कहिए ?
हमेशा दर्द ही करता रहा मुझपे हुकूमत ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...