Saturday, November 2, 2013

मुक्तक : 361 - अपनी बदशक़्ली छिपाकर


अपनी बदशक़्ली छिपाकर ही ख़ुद को पेश करो ।।
क़ाबिले दीद बनाकर ही ख़ुद को पेश करो ।।
कौन तकता है ख़ूबसूरती-ए-रूह यहाँ ?
जिस्म भरपूर सजाकर ही ख़ुद को पेश करो ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

aaha.........very niccccc sir ji

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! sk dubey जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...