Wednesday, November 6, 2013

मुक्तक : 365 - दीवान था लाज़िम


दीवान था लाज़िम तुम्हें मैं सिर्फ़ शेर था ।।
तालिब गुलाब के थे तुम मैं बस कनेर था ।।
फ़िर भी तुम्हारे दिल पे की बेख़ार-हुक़ूमत ,
बेशक़ ये सब नसीब का ही हेर-फेर था ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...