Wednesday, November 13, 2013

मुक्तक : 371 - अज़ीम शख़्स था


अज़ीम शख़्स था हक़ीर से जमाने में ।।
लुटेरे सब थे वो मशगूल था लुटाने में ।।
हमेशा मैंने चाहा उसपे लादना खुशियाँ ,
वलेक उसका तो मज़ा था ग़म उठाने में ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...