Wednesday, November 27, 2013

मुक्तक : 389 - चिलग़ोज़ा , काजू


चिलग़ोज़ा , काजू , बादाम से थोथा चना हुआ ।।
आग-आग से धुआँ-धुआँ सा कोहरा घना हुआ ।।
पूछ रहा है क्यों ? तो सुन ले सिर्फ़ोसिर्फ़ तेरे ;
हाँ ! तेरे ही इश्क़ में ज़ालिम मैं यों फ़ना हुआ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...