Sunday, November 10, 2013

मुक्तक : 370 - ज़रूर मेरी सोच


ज़रूर मेरी सोच कुछ अजीब लगती है ।।
ग़लत , फिज़ूल किज़्ब के क़रीब लगती है ।।
मगर यकीं है हादसों की वज़्ह कितनी दफ़्आ ,
मुझे नसीब , नसीब और नसीब लगती है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...