Sunday, November 3, 2013

मुक्तक : 362 - छोटे से सिर पे


छोटे से सिर पे पत्थरों का इक पहाड़ है ।।
ताउम्र को ये ज़िंदगी क़ैदे तिहाड़ है ।।
मातम है मसर्रत भी तेरे बिन मेरे लिए ,
हर खिलखिलाता बाग़ सिसकता उजाड़ है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति।
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प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ! आपको भी शुभकामना ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...