Saturday, November 9, 2013

मुक्तक : 368 - पेशानी पे चन्दन - तिलक



पेशानी पे चन्दन-तिलक लगा रहे हो तुम ।।
क्या दिल के कालेपन को यों छिपा रहे हो तुम ?
क्या हो गया है पाप कोई ? बार-बार जा ,
गंगा में कभी जमुना में नहा रहे हो तुम ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...