Monday, November 25, 2013

मुक्तक : 386 - पाऊँ यही कि सब हैं


पाऊँ यही कि सब हैं आम कोई भी न ख़ास ।।
कैसा है कौन इसका जब लगाऊँ मैं क़ियास ।।
बाहर से सब ढँके-मुँँदे , सजे-धजे हैं लेक ,
अंदर हैं आधे नंगे या पूरे ही बेलिबास ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...