Saturday, November 16, 2013

मुक्तक : 375 - चाहे बस एक बार


चाहे बस क बार ही मैंने ।।
ये ख़ता की सुधार सी मैंने ।।
मुझको लेना था जिसकी जाँ उसपे ,
ज़िंदगी अपनी वार दी मैंने ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

कहकशां खान said...

बहुत ही सुंदर ब्‍लाग और सुंदर रचना।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! कहकशाँ खान जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...