Saturday, November 30, 2013

मुक्तक : 391 - यहाँ से कहीं और


यहाँ से कहीं और को जाइएगा ।।
मेरे आगे मत हाथ फैलाइएगा ।।
मेरा देना ज्यों ऊँट के मुँह में जीरा ,
मैं दरवेश ख़ुद मुझसे क्या पाइएगा ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Thursday, November 28, 2013

मुक्तक : 390 - सात रंग न डाले


सात रंग तज रंग फ़क़त डाला काला ।।
जिसमें आटा कम भरपूर नमक डाला ।।
वो मेरा कैसेअपना हो सकता है ,
मेरी ऐसी क़िस्मत को लिखने वाला ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Wednesday, November 27, 2013

मुक्तक : 389 - चिलग़ोज़ा , काजू


चिलग़ोज़ा , काजू , बादाम से थोथा चना हुआ ।।
आग-आग से धुआँ-धुआँ सा कोहरा घना हुआ ।।
पूछ रहा है क्यों ? तो सुन ले सिर्फ़ोसिर्फ़ तेरे ;
हाँ ! तेरे ही इश्क़ में ज़ालिम मैं यों फ़ना हुआ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Tuesday, November 26, 2013

मुक्तक : 388 - वो चमकदार वो रोशन


वो चमकदार वो रोशन क्यों जुप ही रहता है ?
सामने क्यों नहीं आता है लुप ही रहता है ?
बात-बेबात-बात करना जिसकी आदत थी ,
क्या हुआ हादसा कि अब वो चुप ही रहता है ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, November 25, 2013

मुक्तक : 387 - पलक झपकते भिखारी


( चित्र Google Search से साभार )
पलक झपकते भिखारी नवाब हो जाये ॥
सराब जलता हुआ ठंडा आब हो जाये ॥
सुना तो ख़ूब न देखा ये करिश्मा-ए-ख़ुदा ,
कि चाहे वो तो ज़र्रा आफ़्ताब हो जाये ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 386 - पाऊँ यही कि सब हैं


पाऊँ यही कि सब हैं आम कोई भी न ख़ास ।।
कैसा है कौन इसका जब लगाऊँ मैं क़ियास ।।
बाहर से सब ढँके-मुँँदे , सजे-धजे हैं लेक ,
अंदर हैं आधे नंगे या पूरे ही बेलिबास ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Sunday, November 24, 2013

मुक्तक : 385 - उसके इश्क़ से


उसके इश्क़ से बचना चाहे पर हो-हो जाये ।।
दिल उसके पुरलुत्फ़ ख़यालों में खो-खो जाये ।।
पहले ही कितने सर रो-रो बोझ उठाये है ?
तिस पर उसकी वज़्नी-यादें भी ढो-ढो जाये ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 384 - ताल ,कूप ,नदिया


( चित्र Google Search से साभार )
ताल ,कूप ,नदिया या नल दे ।।
पीने को तत्काल ही जल दे ।।
है असह्य अब प्यास , अन्यथा
कालकूट सा तरल-गरल दे ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, November 23, 2013

मुक्तक : 383 - कभी हुआ न किसी ने


कभी हुआ न किसी ने मुझे सराहा हो ।।
किया हो दोस्ताना झूठ ही निबाहा हो ।।
कभी भी भूलकर न याद आ रहा मुझको ,
किसी ने प्यार किया हो किसी ने चाहा हो ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Friday, November 22, 2013

मुक्तक : 382 - हल्का कहता है वो


हल्का कहता है वो होता है बोझ ढो-ढो कर ।।
ख़्वाब देखे है जागते हुए न सो-सो कर ।।
लोग देखे तमाम ग़म में हमने हँसते हुए ,
वो अजीब आदमी ख़ुशियाँ मनाए रो-रो कर ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Thursday, November 21, 2013

मुक्तक : 381 - हर एक एक से एक


हर एक एक से एक बढ़कर लगे है ।।
नज़र को हसीं सबका मंज़र लगे है ।।
मोहब्बत की दुनिया बसाने को लेकिन ,
नहीं कोई दिल क़ाबिले घर लगे है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Wednesday, November 20, 2013

मुक्तक : 380 - पुलिस मिलिट्री से



पुलिस मिलिट्री से वानर टोली न बन जाये ।।
एटम बम से पिस्टल की गोली न बन जाये ।।
देख के अँग्रेजी के मारे हिन्दी की हालत ,
डर है कहीं वह भाषा से बोली न बन जाये ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Tuesday, November 19, 2013

मुक्तक : 379 - कब तक भला–बुरा


कब तक भला-बुरा कहूँगा मैं शराब को ?
कब तक न आख़िरश छुऊँगा मैं शराब को ?
जिस दौरे-ग़म से मैं तड़प-तड़प गुज़र रहा ,
लगता है जल्द ही पिऊँगा मैं शराब को ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, November 18, 2013

मुक्तक : 378 - मैं जैसा था पड़ा


मैं जैसा था पड़ा वैसा ही रहा आता पड़ा ।।
घिसटता रहता ना चल सकता न हो पाता खड़ा ।।
करिश्मा ये मेरे एहसासे-कमतरी ने किया ,
जो बन पाया मैं छोटे से बड़े बड़ों से बड़ा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Sunday, November 17, 2013

मुक्तक : 377 - हादसों से , मुश्किलों से



हादसों से , मुश्किलों से हर मुसीबत से ।।
बच रहा हूँ बस दुआ से रब की रहमत से ।।
चलते हैं सब अपने अपने पाँव से लेकिन ,
मैं यक़ीनन उड़ रहा हूँ सिर्फ़ क़िस्मत से ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 376 - यादों में तुम्हारी पड़-पड़ कर



यादों में तेरी नित पड़-पड़ कर जीवन का भुलक्कड़ बन बैठा ।।
सुख-शांति भरे सुंदर मुख पर ज्यों सुदृढ़ मुक्का हन बैठा ।।
मति मारी गई जो न होती मेरी तेरी नयन-झील में न डूबता मैं ,
सबसे जिसको था बचाए रखा तुझे कर वो समर्पित मन बैठा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, November 16, 2013

मुक्तक : 375 - चाहे बस एक बार


चाहे बस क बार ही मैंने ।।
ये ख़ता की सुधार सी मैंने ।।
मुझको लेना था जिसकी जाँ उसपे ,
ज़िंदगी अपनी वार दी मैंने ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Friday, November 15, 2013

मुक्तक : 374 - निकल आई है मेरी


निकल आई है मेरी किसलिए रोनी सी सूरत ?
ग़ज़ब हैं वो जो ग़म में भी रखें हँसने की क़ुव्वत ।।
ग़ुलामी किसको करती है किसी की शाद ख़ुद कहिए ?
हमेशा दर्द ही करता रहा मुझपे हुकूमत ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 373 - न समीप हूँ तेरे मैं न तू


न समीप हूँ तेरे मैं न तू सशरीर यों मेरे पास है ॥
इस बात का पर पूर्णतः मुझको अटल विश्वास है –
अव्यक्त है वाणी से जो व्यवहार से परिलक्षित हो –
तू न माने किन्तु मेरा तेरे मन में स्थायी निवास है ।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Thursday, November 14, 2013

मुक्तक : 372 - तू रक़्स करे है कि


( चित्र Google Search से साभार )
तू रक़्स करे है कि छटपटाये नचैया ?
गाता है कि रोता है बता मुझको गवैया ?
दुनिया से अलग तेरी ज़िंदगी का किसलिए
है तौर-तरीक़ा अलग , अजब है रवैया ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Wednesday, November 13, 2013

मुक्तक : 371 - अज़ीम शख़्स था


अज़ीम शख़्स था हक़ीर से जमाने में ।।
लुटेरे सब थे वो मशगूल था लुटाने में ।।
हमेशा मैंने चाहा उसपे लादना खुशियाँ ,
वलेक उसका तो मज़ा था ग़म उठाने में ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Tuesday, November 12, 2013

क्या '' नोटा " का बटन दबाना ठीक रहेगा............................


फ़िर चुनाव का मौसम आया आ पहुँचे घर-घर नेता ॥
भीख वोट की झुक-झुक माँगें जाकर के दर-दर नेता ॥
ये गूलर के फूल फ़क़त मिलते हैं मतलब की ख़ातिर ,
फ़िर मशाल लेकर भी ढूँढो आते नहीं नज़र नेता ॥
एक वोट की ख़ातिर सौ-सौ झूठ बोलते फिरते हैं ,
कितने ही क़स्मे-वादे करते हैं सिर छूकर नेता ॥
बात जीत की छोड़ो बस मतदान ही तो हो जाने दो ,
जिनके पैर पखारेंगे कल मारेंगे ठोकर नेता ॥
है वास्ता  किसे जनहित से किसे देश की चिंता है ,
धन और नाम कमाएँ कैसे करते यही फ़िकर नेता ॥
संस्कार आदत स्वभाव कैसे वर्षों के छूटेंगे ,
येन-केन बन जाएँ डाकू , क़ातिल भी रहबर-नेता ॥
क्या तब भी  ''नोटा " का बटन दबाना ठीक रहेगा जब ,
लंपट ,चालू ,चोर ,उचक्के ,ठग हों ज़्यादातर नेता ?

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, November 11, 2013

109 : ग़ज़ल - इतनी आबादी न थी



इतनी आबादी न थी तब आदमी था क़ीमती रे ।।
अब तो बकरे से भी सस्ती आदमी की ज़िंदगी रे ।।1।।
क्यों किये जाता है पैदा आदमी बच्चों पे बच्चे ,
पालना मुश्किल है जब महँगी में इक औलाद भी रे ।।2।।
अस्तबल में देखिए कूलर लगे , ए.सी. लगे सच ,
और घर में फुँँकता गर्मी में ग़रीब आम आदमी रे ।।3।।
इक अनार और सैकड़ों बीमार हों कुछ इस तरह की ,
आजकल सचमुच ही ज़ालिम चीज़ है ये नौकरी रे ।।4।।
पहले ख़ातिरदारी रिश्तेदारों की होती थी रब सी ,
अब तो मेहमानों से सबको जैसे चिढ़ सी हो गयी रे ।।5।।
यूँ तो हैं पहचान के इस शह्र में मेरे हज़ारों ,
सच कहूँ लगता नहीं अपना मुझे एकाध भी रे ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Sunday, November 10, 2013

मुक्तक : 370 - ज़रूर मेरी सोच


ज़रूर मेरी सोच कुछ अजीब लगती है ।।
ग़लत , फिज़ूल किज़्ब के क़रीब लगती है ।।
मगर यकीं है हादसों की वज़्ह कितनी दफ़्आ ,
मुझे नसीब , नसीब और नसीब लगती है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 369 - उसकी जिह्वा अति कटुक


उसकी जिह्वा अति कटुक अति तिक्त है ॥
पूर्णतः मधु-खांड रस से रिक्त है ॥
पूछने पर क्यों ? तो वह कहता है यह -
दुःख से वह आपाद-मस्तक सिक्त है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, November 9, 2013

मुक्तक : 368 - पेशानी पे चन्दन - तिलक



पेशानी पे चन्दन-तिलक लगा रहे हो तुम ।।
क्या दिल के कालेपन को यों छिपा रहे हो तुम ?
क्या हो गया है पाप कोई ? बार-बार जा ,
गंगा में कभी जमुना में नहा रहे हो तुम ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Friday, November 8, 2013

मुक्तक : 367 - ये किसकी उसपे



ये किसकी उसपे यक-ब-यक पड़ी रे बद निगाह ?
ये किसकी लग गई रे उसको हाय - हाय आह ।।
दम दे के ही हुई वो जो ख़्वाब की तामीर ,
बा नामो-निशां दम के दम गिरी हुई तबाह ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Thursday, November 7, 2013

मुक्तक : 366 - बड़े अदब ब क़ाइदा


बड़े अदब ब क़ाइदा बहुत करीने से ।।
कभी दीवारो दर से टिक तो गाह ज़ीने से ।।
न आज उसे रहे पहचान भी जिसे कल तक ,
हज़ार बार लगाया था अपने सीने से ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Wednesday, November 6, 2013

मुक्तक : 365 - दीवान था लाज़िम


दीवान था लाज़िम तुम्हें मैं सिर्फ़ शेर था ।।
तालिब गुलाब के थे तुम मैं बस कनेर था ।।
फ़िर भी तुम्हारे दिल पे की बेख़ार-हुक़ूमत ,
बेशक़ ये सब नसीब का ही हेर-फेर था ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Tuesday, November 5, 2013

मुक्तक : 364 - चाहे वो कितने ऊँचे ही


( चित्र Google Search से साभार )
चाहे वो कितने ऊँचे ही ब्राह्मण हों या हों आर्य ?
शिक्षक का सुनिश्चित है सबको विद्यादान कार्य ।।
यदि एकलव्य जैसे सभी ठानने लग जाएँ ,
हो जाएँगे औचित्यहीन सारे द्रोणाचार्य ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, November 4, 2013

घनघोर अमा-निश में..........



घनघोर अमा-निश में 
उजाली की तरह है ॥
अपमान  की कालिख में 
तू लाली की तरह है ॥
संतों के वास्ते है तू 
तरने को नाव सी 
मधु-कैटभों को दुर्गा की ,
काली की तरह है ॥
[ अमा-निश =अमावस्या की रात ,उजाली =चाँदनी ,लाली =इज़्ज़त ]

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 363 - प्रत्येक पल उसी


प्रत्येक पल उसी उसी का नाम लिया है ।।
जीवन ही समर्पित उसी के नाम किया है ।।
पशु से मनुष्य मुझको बनाकर के जगत में ,
इक देवता का मुझको जिसने नाम दिया है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Sunday, November 3, 2013

मुक्तक : 362 - छोटे से सिर पे


छोटे से सिर पे पत्थरों का इक पहाड़ है ।।
ताउम्र को ये ज़िंदगी क़ैदे तिहाड़ है ।।
मातम है मसर्रत भी तेरे बिन मेरे लिए ,
हर खिलखिलाता बाग़ सिसकता उजाड़ है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

Saturday, November 2, 2013

108 : ग़ज़ल - दुश्मन का देख ठाठ



दुश्मन का देख ठाठ-बाट जल रहा हूँ मैं ॥
वो अर्श पर उड़े ज़मीं पे चल रहा हूँ मैं ॥
गिरते नहीं गिराए से भी लोग जिस जगह ,
उस खुरदुरी ज़मीन पर फिसल रहा हूँ मैं ॥
जब तक लचक थी हड्डियों में मैं नहीं झुका ,
अब सख़्त हैं तो झुकने को मचल रहा हूँ मैं ॥
हालात ने कुछ इस तरह बदल दिया मुझे ,
हालात अपने आजकल बदल रहा हूँ मैं ॥
बेहाल हूँ मैं अपने दर्द से यहाँ-वहाँ ,
मारे खुशी के यों नहीं उछल रहा हूँ मैं ॥
औंधे पड़ों को और लात मारता जहाँ,
खा-खा उसी की लातें तो सँभल रहा हूँ मैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...