रक्षाबंधन
सूरत के
हिसाब से वह
चौदहवीं का
चाँद नहीं बल्कि
प्रभात का
हेमद्रावक सूर्य है
रंग उसका
स्वर्णिम नहीं प्लेटिनमीय है
सर्वांग
ढाँप रख सकने में समर्थ
ढीले ढाले
अपारदर्शी वस्त्र धारण रखने के बावजूद भी
जिसकी
देहयष्टि के आगे पानी भर रही हों
ज़ीरो फ़िगर
वाली तमाम फ़िल्मी सेक्स-सिंबल हीरोइने
जिन्हे
देखकर आदमी खोने लगता है
हनीमून के
ख्वाबों में
और तुम
मुझसे कह रहे हो
क्योंकि
उसका कोई भाई नहीं है
क्योंकि
मेरी कोई बहन नहीं है
बन जाऊँ
उसका भाई
नहीं मित्र
! कदापि नहीं !
कह दो उसे –
रक्षाबंधन
के दिन
बिना राखी
के भी मेरी सूनी कलाई
सुंदर लगती
है ॥
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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