Wednesday, August 21, 2013

रक्षाबंधन



रक्षाबंधन

सूरत के हिसाब से वह
चौदहवीं का चाँद नहीं बल्कि
प्रभात का हेमद्रावक सूर्य है
रंग उसका स्वर्णिम नहीं प्लेटिनमीय है
सर्वांग ढाँप रख सकने में समर्थ
ढीले ढाले अपारदर्शी वस्त्र धारण रखने के बावजूद भी
जिसकी देहयष्टि के आगे पानी भर रही हों
ज़ीरो फ़िगर वाली तमाम फ़िल्मी सेक्स-सिंबल हीरोइने
जिन्हे देखकर आदमी खोने लगता है
हनीमून के ख्वाबों में
और तुम मुझसे कह रहे हो
क्योंकि उसका कोई भाई नहीं है
क्योंकि मेरी कोई बहन नहीं है
बन जाऊँ उसका भाई
नहीं मित्र ! कदापि नहीं !
कह दो उसे
रक्षाबंधन के दिन
बिना राखी के भी मेरी सूनी कलाई
सुंदर लगती है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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