सच्चाई-हक़ीक़त से मुँह
को फेर-मोड़कर ॥
हर फ़र्ज़-ज़िम्मेदारी
से रिश्ते ही तोड़कर ॥
सालों से लाज़मी थी
इक तवील नींद सो ,
आँखें ही मूँद लीं
हरेक फ़िक्र छोडकर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
2 comments:
जिस दिन से तू गया हर फ़िक्र मुझ पे छोड़ कर,
फ़र्ज़ निभाता रह गया मैं आज तक,
तू चला जिस राह पर हर फ़िक्र से आज़ाद हो के,
गुजर गया कब का वह जमाना,जो आ गया था छोड़ कर.
वाह ! Ratneshwar Mishra जी ! धन्यवाद !
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