Friday, August 9, 2013

मुक्तक : 303 - बेशक़ ही उसका


बेशक़ ही उसका जिस्मे-पुरकशिश है बेगुनाह ।।
लेकिन है हुस्न कमसिनों के दिल की क़त्लगाह ।।
अंधा भी उसके दीद ही को चाहता है आँख ,
 जो देखे राह चलता रुक के भरता सर्द-आह ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...