न ग़म होता तो क़ीमत कुछ नहीं होती मसर्रत की ॥
अगर होती न नफ़्रत क्या वक़्अत होती मोहब्बत की ॥
मयस्सर होता सब सामाँ जो आसानी से ख़्वाबों का ,
ज़रूरत फिर तो रब की
भी न रह जाती इबादत की ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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