Monday, August 5, 2013

मुक्तक : 299 - न ग़म होता तो


न ग़म होता तो क़ीमत कुछ नहीं होती मसर्रत की ॥
अगर होती न नफ़्रत क्या वक़्अत होती मोहब्बत की ॥
मयस्सर होता सब सामाँ जो आसानी से ख़्वाबों का ,
ज़रूरत फिर तो रब की भी न रह जाती इबादत की ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...