Sunday, August 11, 2013

मुक्तक : 304 - सुई के रूप मेंं


सुई के रूप में घातक कटार-खंज़र था ॥
वो कोई केंचुआ नहीं विशाल अजगर था ॥
तहों में अपनी वो रखता था डुबोकर सब कुछ ,
वो खड्ड ; खड्ड नहीं था महासमंदर था ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...