Sunday, August 18, 2013

मुक्तक : 312 - जिससे ऊबा हूँ



जिससे ऊबा हूँ रोज़-रोज़ मशक़ में आया ॥
जिसको चखते ही उल्टियाँ हों हलक़ में आया ॥
कैसे बोलूँ ये दस्तयाबी क़ामयाबी है ?
जिससे बचता था दूर रहता था हक़ में आया ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...