Wednesday, August 14, 2013

मुक्तक : 308 - तक़दीर उड़ाना चाहे



तक़्दीर उड़ाना चाहे गर मज़ाक़ दोस्तों ॥
हो जाए सोना तक भी पल में ख़ाक दोस्तों ॥
सूरज जला न पाये जिसकी ज़ुल्फ़ उसी की ,
हो जाएँ हड्डियाँ बरफ़ से राख़ दोस्तों ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...