Thursday, August 22, 2013

मुक्तक : 318 - ना परायों से न


ना परायों से न अपनों से न ख़ुद से डरना ॥
जब भी इस राह पे पाँव अपने उठाकर धरना ॥
जब ख़ुदा ही है , है जब रब तो डर के छुप के क्यों ,
इश्क़ बाक़ाइदा कर कर के मुनादी करना ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ! मेरी रचना को अपने मंच पर शामिल करने के लिए ।

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...