Friday, August 9, 2013

99 : ग़ज़ल - आजकल बिस्तर पे है


आज कल बिस्तर पे है आराम ही आराम है ।।
इंतिज़ारे मर्ग उसे बस दूसरा क्या काम है ?1।।
छोड़ दो पीना कहें सब छोड़ दो पीना मगर ,
ये न पूछें वो गटकता जाम पर क्यों जाम है ?2।।
यों तमन्नाएँ तो उसके दिल में हैं लाखों मगर ,
जो है उसका हाल वो बस एक का अंजाम है ।।3।।
क़ाबिले ज़िक्र उसने ऐसा काम कब कोई किया ,
फिर उसे ये मिल रहा किस बात का इन्आम है ?4।।
गर करो इंसाफ़ तो फिर छोड़ दो इस बात को ,
आदमी वह कौन है ? कुछ ख़ास है या आम है ।।5।।
जलते रेगिस्तान में पानी का रोना मत मचा ,
इस सफ़र में बूँद भी मटका बराबर जाम है ।।6।।
प्यास मै के एक क़तरे की भी होती सराब सी ,
आदमी पी-पी और उलटा होता तश्नाकाम है ।।7।।
लोग डर डर के इबादत बंदगी करते वहाँ ,
क्या ख़ुदा गुंडा है दहशतगर्द उनका राम है ?8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

10 comments:

shishirkumar said...

Achhi rachna dhanyabad

Mohan Srivastav poet said...

sundar prastuti

sushila said...

सुन्दर शेर कहे । बधाई आपको !

रश्मि शर्मा said...

बहुत सुदर शेर...बधाई

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत-बहुत धन्यवाद ! yashoda agrawal जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! shishirkumar जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत-बहुत धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री ''मयंक'' जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Mohan Srivastava Poet जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! sushila जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! रश्मि शर्मा जी !

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