आज कल बिस्तर पे है आराम
ही आराम है ।।
इंतिज़ारे मर्ग उसे बस दूसरा
क्या काम है ?1।।
छोड़ दो पीना कहें सब छोड़
दो पीना मगर ,
ये न पूछें वो गटकता जाम
पर क्यों जाम है ?2।।
यों तमन्नाएँ तो उसके दिल में हैं लाखों मगर ,
जो है उसका हाल वो बस एक
का अंजाम है ।।3।।
क़ाबिले ज़िक्र उसने ऐसा काम कब कोई किया ,
फिर उसे ये मिल रहा किस
बात का इन्आम है ?4।।
गर करो इंसाफ़ तो फिर छोड़
दो इस बात को ,
आदमी वह कौन है ? कुछ
ख़ास है या आम है ।।5।।
जलते रेगिस्तान में पानी का रोना मत मचा ,
इस सफ़र में बूँद भी मटका
बराबर जाम है ।।6।।
प्यास मै के एक क़तरे की भी होती सराब सी ,
आदमी पी-पी और उलटा होता
तश्नाकाम है ।।7।।
लोग डर डर के इबादत बंदगी
करते वहाँ ,
क्या ख़ुदा गुंडा है दहशतगर्द
उनका राम है ?8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
10 comments:
Achhi rachna dhanyabad
sundar prastuti
सुन्दर शेर कहे । बधाई आपको !
बहुत सुदर शेर...बधाई
बहुत-बहुत धन्यवाद ! yashoda agrawal जी !
धन्यवाद ! shishirkumar जी !
बहुत-बहुत धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री ''मयंक'' जी !
धन्यवाद ! Mohan Srivastava Poet जी !
धन्यवाद ! sushila जी !
धन्यवाद ! रश्मि शर्मा जी !
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