आँखों के बाद भी रहे मंज़र से दूर हम ॥
अल्लाह-ख़ुदा-रब-वली-ईश्वर
से दूर हम ॥
किस बात से ख़फ़ा थे कि हम मुँह बिसूर के ,
होटल में रहे ग़ैर के
निज घर से दूर हम ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
5 comments:
बहुत बहुत धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ! मेरी रचना को अपने मंच पर लेने के लिए ।
वाह बहुत ही शानदार सुंदर प्रस्तुति..मित्र डॉ. हीरालाल जी
बेवज़ह
तकनीक क्यूँ है
प्यार
में
तकलीफ़ क्यूँ है !
गुलगुले
परहेज़ में हैं
गुड़
तलक़ ही
नीक क्यूँ है !!
- शरद जायसवाल कटनी म.प्र. इंडिया
मो. 9893417522
बहुत बहुत धन्यवाद ! mahesh soni जी !
वाह ! धन्यवाद ! sharad जी !
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