Saturday, August 17, 2013

मुक्तक : 311 - आँखों के बाद भी


आँखों के बाद भी रहे मंज़र से दूर हम ॥
अल्लाह-ख़ुदा-रब-वली-ईश्वर से दूर हम ॥
किस बात से ख़फ़ा थे कि हम मुँह बिसूर के ,
होटल में रहे ग़ैर के निज घर से दूर हम ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

5 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ! मेरी रचना को अपने मंच पर लेने के लिए ।

Unknown said...

वाह बहुत ही शानदार सुंदर प्रस्तुति..मित्र डॉ. हीरालाल जी

sharad said...

बेवज़ह
तकनीक क्यूँ है
प्यार
में
तकलीफ़ क्यूँ है !
गुलगुले
परहेज़ में हैं
गुड़
तलक़ ही
नीक क्यूँ है !!
- शरद जायसवाल कटनी म.प्र. इंडिया
मो. 9893417522

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! mahesh soni जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

वाह ! धन्यवाद ! sharad जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...