Tuesday, August 20, 2013

मुक्तक : 316 - बर्फ़ानी काली-रात


बर्फ़ानी काली-रात दुपहरी का आफ़्ताब ॥
घनघोर अमावस में ऊग जाए माहताब ॥
दीवाने का हर्फ़-हर्फ़ लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो सच बात,
चेहरे से इक ज़रा सा तू उठा दे गर नक़ाब ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...