बर्फ़ानी काली-रात दुपहरी
का आफ़्ताब ॥
घनघोर अमावस में ऊग जाए माहताब ॥
दीवाने का हर्फ़-हर्फ़ लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो सच बात,
चेहरे से इक ज़रा सा तू उठा दे गर नक़ाब ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
1 comment:
धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !
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