Tuesday, August 20, 2013

मुक्तक : 315 - नहीं लिखता है तू



नहीं लिखता है तू इक बार लिख मेरी मगरलिखना ॥
ख़ुदा मेरे मेरी तक़दीर दोबारा अगर लिखना ॥
कि जितनी चाय में शक्कर कि आटे में नमक जितना ,
तू बस उतना ही उसमें रंजो-ग़म कम या ज़बर लिखना ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति  

5 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

आपको भी शुभकामनाएँ ! धन्यवाद !

Darshan jangra said...

बहुत ही सुंदर,रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

आपको भी शुभकामनाएँ ! Darshan jangra जी ! धन्यवाद !

Anonymous said...

matlab nahi samjha

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

आपका पढ़ना ही मेरे लिए सौभाग्य है ! धन्यवाद !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...