मुफ़्लिसी में अपार दौलतो-दफ़ीना
हो ॥
बाढ़ से जो लगा दे पार
वो सफ़ीना हो ॥
धुप्प अँधेरों में
इक मशालची हो, इक सूरज,
कब से इस बंद दिल का तुम धड़कता सीना हो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (16-08-2013) को बेईमान काटते हैं चाँदी:चर्चा मंच 1338 ....शुक्रवार... में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ! मेरी रचना को अपनी चर्चा में शामिल करने के लिए ।
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