Friday, August 2, 2013

मुक्तक : 296 (B) - हँसती आँखों में


हँसती आँखों में हमेशा को नमी आ बैठी ॥
जिनमें हर वक़्त चराग़ाँ था ग़मी आ बैठी ॥
हादसे एक के बाद एक ऐसे-ऐसे हुए ,
सच ! समंदर को भी पानी की कमी आ बैठी ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...