Tuesday, August 6, 2013

मुक्तक : 300 - फ़िक्र का अड्डा


फ़िक्र का अड्डा बेचैनी का ठाँव जमा था ॥
ग़म की बस्ती दुःख का पूरा गाँव जमा था ॥
उस दिन से ही मची थी मुझमें अफ़रा-तफ़री ,
जिस दिन मेरे दिल में इश्क़ का पाँव जमा था ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

Anonymous said...

ishk itna bura to nahi h ji.

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...