हूँ बुरा तो मुझे बुरा बोलो ।।
ख़ूब मिर्ची-नमक लगा बोलो ।।1।।
जो कहा था वो कर दिखाया है ,
मुझको वादे से मत फिरा बोलो ।।2।।
चुप हो तौहीन जो सहन कर लूँ ,
मुझको बेशर्म-बेहया बोलो ।।3।।
उनको सर्दी की धूप बोलो तो ,
मुझको गर्मी की छाँव सा बोलो ।।4।।
किसको बरबादियों की दूँ तोहमत ,
अपने हाथों न पर मिटा बोलो ।।5।।
गर मैं बोलूँ तो समझो रोता हूँ ,
मेरी चुप्पी को क़हक़हा बोलो ।।6।।
ज़िंदगी जी रहा हूँ मैं जैसी ,
उसको ज़िंदाँ कहो , क़ज़ा बोलो ।।7।।
हूँ नज़रबंद सा मैं मुद्दत से ,
कोई पूछे तो मर गया बोलो ।।8।।
ख़ूब मिर्ची-नमक लगा बोलो ।।1।।
जो कहा था वो कर दिखाया है ,
मुझको वादे से मत फिरा बोलो ।।2।।
चुप हो तौहीन जो सहन कर लूँ ,
मुझको बेशर्म-बेहया बोलो ।।3।।
उनको सर्दी की धूप बोलो तो ,
मुझको गर्मी की छाँव सा बोलो ।।4।।
किसको बरबादियों की दूँ तोहमत ,
अपने हाथों न पर मिटा बोलो ।।5।।
गर मैं बोलूँ तो समझो रोता हूँ ,
मेरी चुप्पी को क़हक़हा बोलो ।।6।।
ज़िंदगी जी रहा हूँ मैं जैसी ,
उसको ज़िंदाँ कहो , क़ज़ा बोलो ।।7।।
हूँ नज़रबंद सा मैं मुद्दत से ,
कोई पूछे तो मर गया बोलो ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
7 comments:
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [26.08.2013]
चर्चामंच 1349 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
मेरी इस रचना को अपने मंच पर स्थान स्थान देने का बहुत बहुत शुक्रिया सरिता भाटिया जी !
डा. हीरा लाल प्रजपति जी,
बहुत ही सुंदर ,बेहतरीन व मर्मस्पर्शी रचना है,बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएं
बहुत बहुत धन्यवाद ! Mohan Srivastava Poet जी !
धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना...
धन्यवाद ! Kailash Sharma जी !
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