Sunday, August 25, 2013

101 : ग़ज़ल - हूँ बुरा तो मुझे


हूँ बुरा तो मुझे बुरा बोलो ।।
ख़ूब मिर्ची-नमक लगा बोलो ।।1।।
जो कहा था वो कर दिखाया है ,
मुझको वादे से मत फिरा बोलो ।।2।।
चुप हो तौहीन जो सहन कर लूँ ,
मुझको बेशर्म-बेहया बोलो ।।3।।
उनको सर्दी की धूप बोलो तो ,
मुझको गर्मी की छाँव सा बोलो ।।4।।
किसको बरबादियों की दूँ तोहमत ,
अपने हाथों न पर मिटा बोलो ।।5।।
गर मैं बोलूँ तो समझो रोता हूँ ,
मेरी चुप्पी को क़हक़हा बोलो ।।6।।
ज़िंदगी जी रहा हूँ मैं जैसी ,
उसको ज़िंदाँ कहो , क़ज़ा बोलो ।।7।।
हूँ नज़रबंद सा मैं मुद्दत से ,
कोई पूछे तो मर गया बोलो ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

7 comments:

Guzarish said...

आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [26.08.2013]
चर्चामंच 1349 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

मेरी इस रचना को अपने मंच पर स्थान स्थान देने का बहुत बहुत शुक्रिया सरिता भाटिया जी !

Mohan Srivastav poet said...

डा. हीरा लाल प्रजपति जी,

बहुत ही सुंदर ,बेहतरीन व मर्मस्पर्शी रचना है,बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएं

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! Mohan Srivastava Poet जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Kailash Sharma जी !

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