अपनी कविताओं में मैं अपनी व्यथा कहता रहा ।।
लोग मेरे सच को समझे मैं कथा कहता रहा ।।1।।
मैं न चिंघाड़ा-दहाड़ा तब तलक हर मेमना ,
मुझको इक कुत्ता-सुअर-बकरा-गधा कहता रहा ।।2।।
हर जतन जिसने किया मुझको डुबोने का मैं उस ,
दोस्त को फिर-फिर उबरकर नाख़ुदा कहता रहा ।।3।।
जब तलक दुनिया है क्या मुझको समझ आयी नहीं ,
अच्छे को अच्छा बुरे को मैं बुरा कहता रहा ।।4।।
ख़ुदकुशी करने से क्या रोका उसे ताज़िन्दगी ,
मेरे इस एहसाँ को उलटे वो ख़ता कहता रहा ।।5।।
लोग मेरे सच को समझे मैं कथा कहता रहा ।।1।।
मैं न चिंघाड़ा-दहाड़ा तब तलक हर मेमना ,
मुझको इक कुत्ता-सुअर-बकरा-गधा कहता रहा ।।2।।
हर जतन जिसने किया मुझको डुबोने का मैं उस ,
दोस्त को फिर-फिर उबरकर नाख़ुदा कहता रहा ।।3।।
जब तलक दुनिया है क्या मुझको समझ आयी नहीं ,
अच्छे को अच्छा बुरे को मैं बुरा कहता रहा ।।4।।
ख़ुदकुशी करने से क्या रोका उसे ताज़िन्दगी ,
मेरे इस एहसाँ को उलटे वो ख़ता कहता रहा ।।5।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
8 comments:
beautiful ...
धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !
accha likhto ho sir
धन्यवाद ! Rudra Korav जी !
बहुत सुन्दर...!!
'ख़ुदकुशी करने से क्या रोका उसे, ताज़िन्दगी
मेरे इस अहसां को उल्टा वो ख़ता कहता रहा॥'
धन्यवाद ! Ghanshyam kumar जी !
bahut hi sunder
धन्यवाद ! Yoginder Singh जी !
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