Sunday, August 4, 2013

98 : ग़ज़ल - अपनी कविताओं में मैं


अपनी कविताओं में मैं अपनी व्यथा कहता रहा ।।
लोग मेरे सच को समझे मैं कथा कहता रहा ।।1।।
मैं न चिंघाड़ा-दहाड़ा तब तलक हर मेमना ,
मुझको इक कुत्ता-सुअर-बकरा-गधा कहता रहा ।।2।।
हर जतन जिसने किया मुझको डुबोने का मैं उस ,
दोस्त को फिर-फिर उबरकर नाख़ुदा कहता रहा ।।3।।
जब तलक दुनिया है क्या मुझको समझ आयी नहीं ,
अच्छे को अच्छा बुरे को मैं बुरा कहता रहा ।।4।।
ख़ुदकुशी करने से क्या रोका उसे ताज़िन्दगी ,
मेरे इस एहसाँ को उलटे वो ख़ता कहता रहा ।।5।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

8 comments:

Pratibha Verma said...

beautiful ...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

Unknown said...

accha likhto ho sir

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Rudra Korav जी !

Ghanshyam kumar said...

बहुत सुन्दर...!!
'ख़ुदकुशी करने से क्या रोका उसे, ताज़िन्दगी
मेरे इस अहसां को उल्टा वो ख़ता कहता रहा॥'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Ghanshyam kumar जी !

Unknown said...

bahut hi sunder

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Yoginder Singh जी !

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