Thursday, August 8, 2013

मुक्तक : 302 - न थे हम जिनके


न थे हम जिनके कुछ हमको वो अपना सब समझते थे ॥
अज़ीमुश्शान अलग इंसाँ मगर वो कब समझते थे ?
क़सम रब की किया करते थे जब हमसे मोहब्बत वो ,
हमें वो मज़्हब-ओ-ईमाँँ क्या अपना रब समझते थे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...