Wednesday, August 28, 2013

102 : ग़ज़ल - ऐसा नहीं कि हमको



ऐसा नहीं कि हमको आता नहीं लगाना ।।
पर चूक-चूक जाए  है आज ही निशाना ।।1।।
नादाँँ अगर न होते तो बद को बद न कहते ,
अब किस तरह मनाएँ नाराज़ है ज़माना ?2।।
जब तक न की थी हमने हाँ 'वो मना रहे थे ,
तैयार देख हमको करने लगे बहाना ।।3।।
इतनी दफ़्आ हम उनसे सच जैसा झूठ बोले ,
अंजाम आज का सब सच उसने झूठ माना ।।4।
इक बार आज़माइश हमने न की है उनकी ,
जब जब भी उनको परखा पाया वही पुराना ।।5।।
महफ़िल में अपनी-अपनी कहने में सब लगे हैं ,
सुनने न कोई खाली कहने से क्या फ़साना ?6।।
इस फ़िक्र में कि अपना क्या होगा ज़िंदगी में ,
हम भूल ही चुके हैं क्या हँसना क्या हँसाना ?7।।
कहता  है हिज्र में ही रहता है प्यार ज़िंदा ,
महबूब मुझसे शादी को इसलिए न माना ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

6 comments:

Sanjeev Mishra said...

नादां अगर न होते तो बद को बद न कहते ,
अब किस तरह मनाएँ नाराज़ है ज़माना ?
जब तक न की थी हमने ‘हाँ’ वो मना रहे थे ,
तैयार देख हमको करने लगे बहाना ॥
.........भाई साब , मेरा प्रणाम स्वीकार करें.....एक-एक शेर अमूल्य है, विशेष कर ये दोनों......बहुत खूब............

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत-बहुत धन्यवाद ! बहुत बहुत आभार Sanjeev Mishra जी !

Rajendra kumar said...

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें,सादर !!

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

आपको भी राजेंद्र कुमार जी !

Unknown said...

बहुत-बहुत धन्यवाद !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Heeralal Gupta जी !

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