Saturday, August 3, 2013

मुक्तक : 297 - क्या ग़ज़ब की


क्या ग़ज़ब की उसने क़िस्मत पाई है यारों ॥
जुर्म कर कर के भी इज्ज़त पाई है यारों ॥
भोगते हैं नर्क हम सच्चाई पे चलकर ,
उसने छल-छंदों से जन्नत पाई है यारों ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...