Sunday, June 22, 2014

मुक्तक : 551 - अपने हुनर-ओ-फ़न का


अपने हुनर-ओ-फ़न का पूरा करके इस्तेमाल ॥
उसने दिखाया हमको इक बहुत बड़ा क़माल ॥
कल तक वो पैसे-पैसे का मोहताज, नामचीन
बन बैठा आज रातों रात अमीर मालामाल ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-06-2014) को "जिन्दगी तेरी फिजूलखर्ची" (चर्चा मंच 1652) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...