Sunday, June 29, 2014

मुक्तक : 560 - लाखों मातम में भी


लाखों मातम में भी जिगर जो न बिलख रोएँ ॥
जिस्म तोला हजारों रत्ती सर टनों ढोएँ ॥
देख हैराँ न हो यहाँ बगल में फूलों के ,
सैकड़ों नोक पे काँटों की मुस्कुरा सोएँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (30-06-2014) को "सबसे बड़ी गुत्थी है इंसानी दिमाग " (चर्चा मंच 1660) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! सुशील कुमार जोशी जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...