Thursday, June 26, 2014

मुक्तक : 556 - न पोर्च न बरामदा


न पोर्च न बरामदा न लान दोस्तों ॥
हरगिज़ न देखने में आलीशान दोस्तों ॥
जन्नत से कम नहीं मगर है मेरे वास्ते ,
घर मेरा बस दो कमरों का मकान दोस्तों ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...