Friday, June 20, 2014

मुक्तक : 549 - जो भी थे मुझमें छिन गए


जो भी थे मुझमें छिन गए वो सब हुनर कमाल ॥ 
जितना था तेज़गाम उतना अब हूँ मंद चाल ॥ 
कितना कहा था सबने इश्क़ से रहूँ मैं दूर ,
अपने ही हाथों कर ली अपनी ज़िंदगी मुहाल ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...