Thursday, June 19, 2014

मुक्तक : 547 - तक्लीफ़ पे तक्लीफ़


तक्लीफ़ पे तक्लीफ़ दर्द-दर्द पे दिया ॥
जो भी दिया था तुमने हाथों हाथ उसे लिया ॥
तुम जैसा न शौक़ीन-ए-ग़म कि दिल ही दिल में रो ,
हँस-हँस के सितम झेले सब कभी न उफ़ किया ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत खूब ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! सुशील कुमार जोशी जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...