Wednesday, June 18, 2014

मुक्तक : 546 - उसके अंदर में क्या


उसके अंदर में क्या मंज़र दिखाई देता है ?
बिखरे कमरे से सिमटा घर दिखाई देता है ॥
जबसे सीखी है बिना शर्त परस्तिश उसने ,
बंदा बेहतर से भी बेहतर दिखाई देता है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

वाह एक एक लफ्ज़ बहुत ख़ूबसूरती से इस गज़ल की उम्दाय्गी बढ़ा रहा है. हमेशा की तरह ये भी एक सुंदर कृति.

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! संजयभास्कर जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...