Thursday, June 26, 2014

मुक्तक : 557 - अपने ही दफ्न को


अपने ही दफ्न को मरघट आए हुए ॥
ख़ुद का काँधों पे मुर्दा उठाए हुए ॥
देखिए बेबसी ये हमारी कि हम ,
खिलखिलाते हैं आँसू छिपाए हुए ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...