Tuesday, June 3, 2014

मुक्तक : 534 - लिपटे-उलझे बल ऊँचे


लिपटे-उलझे बल ऊँचे माथ छोड़ चल देती ॥ 
कसके पकड़ा झटक के हाथ छोड़ चल देती ॥ 
ज़िंदगी तुझसा और बेवफ़ा भी होगा क्या ?
जब हो मर्ज़ी तेरी तू साथ छोड़ चल देती ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...