Tuesday, June 3, 2014

मुक्तक : 533 - ठंडे बुझे पलीतों को


( चित्र Google Search से साभार )

ठंडे बुझे पलीतों को गाज़ बनते देखा ॥
कल तक तो चंद बहुतों को आज बनते देखा ॥
दुनिया में अब बचा क्या है कुछ भी ग़ैरमुमकिन  ?
जूता घिसा-फटा भी सरताज बनते देखा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...