Monday, June 9, 2014

मुक्तक : 539 - रफ़्ता-रफ़्ता तेज़ से भी


रफ़्ता-रफ़्ता तेज़ से भी तेज़ चलती जा रही ॥
गर्मियों के बर्फ़ की मानिंद गलती जा रही ॥
सदियाँ लाज़िम हैं हमें और पास हैं बस चंद दिन ,
भर जवानी फ़िक्र में इस उम्र ढलती जा रही ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...