रफ़्ता-रफ़्ता तेज़ से भी तेज़ चलती जा रही ॥
गर्मियों के बर्फ़ की मानिंद
गलती जा रही ॥
सदियाँ लाज़िम हैं हमें
और पास हैं बस चंद दिन ,
भर जवानी फ़िक्र में इस उम्र ढलती जा रही ॥
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
■ चेतावनी : इस वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी समस्त रचनाएँ पूर्णतः मौलिक हैं एवं इन पर मेरा स्वत्वाधिकार एवं प्रतिलिप्याधिकार ℗ & © है अतः किसी भी रचना को मेरी लिखित अनुमति के बिना किसी भी माध्यम में किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना पूर्णतः ग़ैर क़ानूनी होगा । रचनाओं के साथ संलग्न चित्र स्वरचित / google search से साभार । -डॉ. हीरालाल प्रजापति
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
No comments:
Post a Comment