ताउम्र कराहों
की न आहों की सज़ा दो ॥
मत एक भूल पर
सौ गुनाहों की सज़ा दो ॥
जूतों को छीन-फाड़
दो टाँगें तो न काटो ,
चाहो तो बबूलों
भरी राहों की सज़ा दो ॥
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-06-2014) को ""मृगतृष्णा" (चर्चा मंच-1637) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
वाह जी वा!
धन्यवाद ! Vinay Prajapati जी !
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