Friday, September 27, 2013

मुक्तक : 351 - आस-विश्वास


आस-विश्वास मारे जा रहे हैं ॥
आम-ओ-ख़ास मारे जा रहे हैं ॥
पहले ख़ुशबू ही देते थे मगर अब ,
फूल सब बास मारे जा रहे हैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

6 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत खुबसूरत !
नई पोस्ट साधू या शैतान
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virendra sharma said...

बहुत सुन्दर।

आस-विश्वास मारे जा रहे हैं ॥
आम-ओ-ख़ास मारे जा रहे हैं ॥
पहले देते थे बस सुगंध पर अब ,
फूल सब बास मारे जा रहे हैं ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

वो देखो शान से जूते खाते जा रहें हैं ,

"बात तो करेंगे फिर भी "कहे जा रहें हैं ,

उनके समर्थक हांके जा रहें हैं ,

जूता खाया है तो सोच समझके ही खाया होगा ,



डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! राजीव कुमार झा जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! कालीपद प्रसाद जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Virendra Kumar Sharma जी !

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