Wednesday, September 11, 2013

मुक्तक : 335 - रोजी-रोटी न


रोजी-रोटी न काम-धाम की पर्वाह तू कर ॥
फिर न रुसवाई की न नाम की पर्वाह तू कर ॥
अपने पाँवों को पर बनाने की बस फ़िक्र को रख ,
इश्क़ कीजै तो मत मक़ाम की पर्वाह तू कर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बृहस्पतिवार (12-09-2013) को चर्चा - 1366मे "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
आप सबको गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी ! मेरी इस रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए ! आपको भी गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...