Tuesday, September 10, 2013

मुक्तक : 333 - तोड़ डालूँ या



तोड़ डालूँ या स्वयं ही टूट लूँ ?
सौंप दूँ सब कुछ या पूरा लूट लूँ ?
स्वर्ण अवसर है कि प्रहरी सुप्त हैं , 
क्यों न कारागृह को फाँदूँ छूट लूँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत - बहुत धन्यवाद ! Sriram Roy जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...