Friday, September 20, 2013

मुक्तक : 342 - बेबस हो वो ख़रीदे


बेबस हो वो ख़रीदे मुँहमाँगे दाम में ॥
जो चीज़ रोज़ आती इंसाँ के काम में ॥
गोदाम में कर सूरज को क़ैद बेचें वो ,
एक-एक किरन इक-इक सूरज के दाम में ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Ghanshyam kumar said...

बहुत सुन्दर...
'एक-एक किरन इक-इक सूरज के दाम में...'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Ghanshyam kumar जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...