बेबस हो वो ख़रीदे मुँहमाँगे
दाम में ॥
जो चीज़ रोज़ आती इंसाँ
के काम में ॥
गोदाम में कर सूरज को क़ैद बेचें वो ,
एक-एक किरन इक-इक सूरज
के दाम में ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
2 comments:
बहुत सुन्दर...
'एक-एक किरन इक-इक सूरज के दाम में...'
धन्यवाद ! Ghanshyam kumar जी !
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