Sunday, September 8, 2013

मुक्तक : 331 - या रब कभी-कभार


या रब कभी-कभार तो मनचाही चीज़ दे ॥
थोड़ा ही खाने को दे वलेकिन लज़ीज़ दे ॥
आती है शर्म उघड़े बदन भीड़-भाड़ में ,
दो चड्डियाँ , दो पेण्ट , दो कुर्ते-कमीज़ दे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...