Wednesday, September 18, 2013

मुक्तक : 341 - वस्ल की जितना हो


वस्ल की जितना हो उम्मीद कमजकम रखना ॥
हिज्र के बाद भी हँसने का दिल में दम रखना ॥
वर्ना मत भूलकर भी राहे इश्क़ में अपनी ,
आँखें दौड़ाना-बिछाना-लगाना-नम रखना ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

5 comments:

Unknown said...

बहुत सुन्दर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! अभिषेक कुमार झा अभी जी !

Unknown said...

WAH ; UMDAA

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Harsh Tripathi जी !

शिव राज शर्मा said...

बहुत सुन्दर बहुत सुन्दर

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...